क्या फर्क पड़ता है शीर्षक काव्य-संग्रह डॉ.राखी रानी का पहला एकल काव्य-संग्रह है । जिसमें बहत्तर कविताएँ संकलित हैं। इन कविताओं में कवियत्री के मनोभावों का एक विशाल फलक है जहाँ व्यक्ति समाज और राष्ट्र के दर्द की अभिव्यक्ति में एक आशान्वित दृष्टिकोण ध्वनित है । चाहे कविता खंडित प्रेम की हो समाज व राष्ट्र की भ्रष्ट संक्रमण संग्रह व्यवस्था की हो; व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति में भी आशान्वित पक्ष काव्य- संग्रह की विशेषता है। क्या फर्क पड़ता है चक्रव्यूह सफेदपोश जैसी कविताएँ हमारे दोहरे चरित्र और व्यवस्था पर प्रश्न खडे़ करती है तो ' विजयी विश्व कविता' युद्घ की विभीषिका में भी बरनॉल सा मीत ढूँढती है।यही नहीं प्रेम का मानक मैं और तुम एक विमर्श क्षितिज से धूप पृथ्वी हूँ समय से संवाद बरगद तासीर जैसी कविताएँ समय की प्रतिकूलता में भी पुनर्सृजन के पथ प्रशस्त करती दिखती है 'दिमागी वायरस ' कविता कोरोना वायरस के माध्यम से मानवीय चरित्र के संक्रमित वायरस को भी उद्घाटित करती है।
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