मेरे प्रिय<br>प्रेम।<br>पढ़ो आकाश को क्योंकि वही शास्त्र है।<br>सुनो शून्य को क्योंकि वहीं मंत्र है।<br>जीयो मृत्यु को क्योंकि वही अमृत है।<br>और गये शास्त्र में कि भटके।<br>और पकड़े शब्द कि डूबे।<br>लिया सहारा मंत्र का कि किया छेद नाव में।<br>और खोजना मत अमृत को।<br>क्योंकि उसे ही खोजते तो जन्म-जन्म व्यर्थ ही गंवाये हैं।<br>खोजी मृत्यु को मिलो मृत्यु से।<br>और अमृत के द्वार खुल जाते हैं।<br>मृत्यु अमृत का ही द्वार है।
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