लाट साहब के इलाके में चैनो अमन था। उनके विरोधी अगर कभी-कभार कुनमुनाते भी तो उन्हें सुविधाओं की चरस चटा दी जाती। सब मस्त-मस्त सो जाते। कहीं कोई आलोचक नहीं था। चाटुकारों की जनसंख्या में निरंतर गुणात्मक वृद्धि परिलक्षित होती। सारी नगरी लाट साहब की जय-जयकार में निमग्न रहती। हवाएं उनके राजप्रासाद को छूकर बहतीं और कीर्ति-पताका उनके चरण छूकर ही लहराने का साहस जुटा पाती। हालांकि अभी इलाके की नदियो ने लाट साहब के चरण पखारने आरंभ नहीं किए थे लेकिन आने वाले समय में इसकी संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता था। तमाम मोटी मछलियो ने तो लाट साहब को अपनी और से विश्वास दिलाना भी आरंभ कर दिया था।- इसी संकलन से।
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