जाने केतनी गायत्री आज के ई प्रगतिसील कहै जाय वाले जुग मा पीरा झेलत-झेलत समाधी पावत रही हैं जाने केतने लड्डू गोपाल भविष्य के अँधेरे म गुम होत रहे हैं कहि पाउब बड़ा कठिन बाय। लेकिन लोक निन्दा कै परवाह न कइके अपनी कोख कां सुरक्षित रक्खै और जनम देइ का अधिकार हर महतारी क होय यहका गायत्री सिद्ध करथीं। चरित्रहीन अपवित्र कहै वाले समाज से चुपचाप जूझथीं। अपनौ कमजोरी स्वीकार करथीं पाप-पुण्य कइ तर्क-वितर्क मनै मन करथीं औ महतारी बनै क गौरव सबसे उप्पर मान थीं। गायत्री कै मुक्ती कौनिउ कायर मेहरारू कै मौत नाय होय ऊ एक जुझारू महतारी कै मौत होय जौन समाज के छल कै सिकार होइके नाय टूटी लेकिन अपने लरिका काँ सफल भविष्य न दै पावै कै हतासा से परेसान होइके टूटि गै। ऐसे बच्चन काँ जनम देय वाले बाप जौन आपन नामौ नायं दै सकत का राति के अँधेरे मा वनकै आत्मा वन्है धिक्कारति ना होये? का वै सचमुच मानव हृदय खोय चुका हइन? कानून मा तो संरक्षक के रूप मा माँ के नाम का मान्यता दै दीन गै बा पै का समाजौ वहि महतारी का सम्मान दिहे बा? नारी के मन मा पाप-पुण्य के मन्दराचल कै मथानी रात-दिन चलत रहति है औ ओहसे निकरा विष अपने कण्ठ माँ ऊ सदा से उतारत रही है। स्त्री से वकरे देह के पवित्रता कै जेतना उम्मीद समाज करत है वतना पुरुष से नाय। यही से पुरुष ग्लानि औ अपमान से वतना नाय गलत जेतना स्त्री। सबसे पहिले अंगुरी औरत की ओर उठत है। ई अंतर काहे? यहि तरह कै बहुत सारे ज्वलंत प्रस्नन क उत्तर समाज काँ भी तलासै का बा। हमार पाठक यहि दिसा मा सोचिहैं तौ हम्मैं ई लागे हमरे लड्डू गोपाल कै माई के आत्मा का सांती मिले। युवा पीढ़ी यहि संवेदना से जुडे़ त समाज जरूर बदले ई बिस्वास बा।
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