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About The Book

औरत के लिए कभी देह की सेंधमारी मुक्तिपथ भी हो जाती है लेकिन हमारी वर्जनाएँ इस मुक्तिपथ की कभी स्वीकृति नहीं देती...और...पथ भ्रष्ट ही कहलाती है। दफ़्तरों में आज भी बड़े साहब औरत की विवशता का भरपूर फ़ायदा उठाने से गुरेज नहीं करते। औरत उनके लिए मात्र गोटियाँ ही होती हैं जहाँ दिल चाहा उछाल दिया। औरत मात्र चाबी वाला खिलौना हो जाती है। गीली मिट्टी के खिलौनों में तब्दील होती औरत की ही विवशता है...मेरी कहानियों की यही वीभत्स और नंगी सच्चाइयाँ हैं। कभी-कभार औरत की देह ही उसकी शत्रु हो जाती है जिसे संभालते-संभालते उसे तरह-तरह की मुस्तैदियों की कन्दरा में से गुज़रना पड़ता है। मेरी इन समस्त कहानियों में औरत की ज़िन्दगी की अंतरंग हौलनाक सच्चाइयाँ भव्यता से उद्घाटित हुई हैं। मेरी इन कहानियों में औरत के भीतर की औरत का चीत्कार है...हाहाकार है...क्रन्दन है...विवशता है...विडम्बना है...और...औरत की दुश्मन होती देह की अनेक गाथाएँ हैं। संग्रह की कहानियों ‘ज़ाहिल ‘बेशर्म’ ‘धूप निकलने तक’ ‘गीली मिट्टी के खिलौने’ ‘साँप’ ‘ख़ामियाजा’ ‘यहीं तो फूल मुरझाते हैं’ ‘समन्दर में उतरी लड़की’ ‘छिपकली’ ‘गिद्धें’ ‘यह मुक्ति पथ नहीं’ ‘मुखौटों वाले लोगों के बीच’ ‘पिंजरे से दूर होती चिड़िया’ ‘मेरे शहर के लोग’ ‘लड़कियाँ सावधान हो रही हैं’ ‘नंगी ईंटों वाला मकान’ ‘मुर्दा लोगों के बीच’ तथा ‘पहियों पर रेंगती ज़िन्दगी’ में औरत के अनेक रूप प्रस्तुत हुए हैं। हर एक कहानी में औरत किसी ना किसी रूप में अपनी देह को बचाने की असंख्य कोशिशों में रत है तो कहीं औरत स्वयं अपनी इच्छा से इस अन्धे गर्त में गिरने की फ़िराक में रहती है। मेरी इन कहानियों में औरत के जिस्म की सेंधमारी के कितने अड्डे हैं...सड़क पर फुटपाथी ज़िन्दगी बसर करने वाले लोगों की बिगड़ैल लड़कियाँ...शराब के अड्डों पर ग्राहकों को शराब परोसने वाली छमिया...झोंपड़पट्टी में रहने को अभिशप्त अपनी देह के भूगोल से परिचित कच्ची उम्र की लड़कियाँ...रेलवे ट्रैक पर खड़े वैगनों में से गेहूँ चुराने वाली भूख से अभिशप्त औरतें...दफ़्तरों में किसी औरत की विवशता का सौदा करने वाले बड़े अफ़्सर...बस अड्डे के बाहर ज़िन्दगी बसर करने वाली अपंग औरत जो अपने एक कमरे वाले मकान को शहरी अय्याश लोंडों को अय्याशी हेतु कमरा उपलब्ध करवाने में ज़रा भी गुरेज नहीं करती...हाइवे पर बने ढाबों पर शराबी ट्रक ड्राइवरों को सजावट का सामान बेचने वाली लम्पट औरतें जिनको अपना सामान बेचने से ज़्यादा ट्रक ड्राइवरों को अपना जिस्म परोसना ज़्यादा रूचिकर लगता है...दिन-दिहाड़े शहर की सड़कों पर शराब में धुत औरतों के जिस्म को चटखारे लेने वाले लोगों में होती बन्दरबाँट...शादी-ब्याहों में नाचने वाली औरतों को उनके ख़ाविन्द स्वयं देह व्यापार में घसीटने से गुरेज नहीं करते। उनके लिए औरत का जिस्म काम की चीज हो जाता है। उस औरत में पिंजरे समेत उड़ जाने की क्षमता है तभी तो वह शादी के तमाम भौतिक बन्धनों से मुक्त होने का निर्णय लेती है...चार पैसों की तलाश में अपने ख़ाविन्द की साइकिल पर बैठकर सरकारी क्वार्टरों में रहते बाबुओं के लिए भोग्या होने हेतु विवश औरतें...गाड़ियों में भीख मांगने वाली अपंग-लूली औरत जिसे तमाम गाड़ी की सवारियाँ ललचाई नज़रों से उसके जिस्म को भेदने से भी गुरेज नहीं करतीं। यहाँ तक कि पुलिसिए भी उसका दैहिक शोषण करते हैं। मुम्बई की झोंपड़पट्टियों में रहने वाली लड़कियाँ जिन्होंने अपने जिस्म की सेंधमारी से बचने हेतु कई गुरुमंत्र सीख लिए हैं। सड़कों पर रात के अंधियारे में देह व्यापार को निकली औरतें जिनको अपनी ढलती उम्र और बालों पर उगती चाँदी और भी भयभीत कर जाती है या वो औरतें जो पति की गैरहाज़िरी में कमसिन उम्र के बिगड़ैल छोकरों के साथ दैहिक सेंधमारी करने को अधिमान देती हैं जिनके लिए रोजमर्रा की ज़िन्दगी में जिस्म की सेंधमारी ही एक ध्येय है।
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