काश की में जख्म बन जाऊ और तू मरहम लगे तू जितनी बार मुझपर उतनी ही बार में करहा उठू प्यार से। *** दायरा समझ के बहार का मेरा बस इतना सा ही देखु रब एक सब में । *** मजहब माँ का न पूछो लोगो। उदर मे.. मैं पल रहा था उसके उसने हर मजहब का निवाला मुझको खिलाया था। *** आशा चंपानेरी “टिनू”
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