कुमार मुकुल पेशे से पत्रकार और पैशन से कवि हैं। ‘लगभग खुशी’ उनका पहला कथा-संकलन है। इसमें कथा के इतने अनूठे और विविध रंग मुझे मिले कि मैं यही सोचती रही कि अब तक उन्होंने कहानियों को नेपथ्य में क्यों रखा ? क्योंकि मुकुल जी जितने गहन भाव के कवि हैं उतनी ही परख-समझ और संवेदना उनकी कहानियों में है। इस संग्रह में बारह कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ इंगित करती हैं कि लेखक अपने आसपास के समाज से कितने गहरे जुड़े हैं लेखक के पास वह दृष्टि है जो जीवन और आस-पास घट रही हर घटना को विश्लेषित करके देख सके। वे घटनाओं को जस का तस नहीं उकेरते बल्कि शैल्पिकता का संधान करते हैं हर कथा को अपना ट्रीटमेंट देते हैं। भाषा और कहन के स्तर पर। इस संकलन की कहानियाँ अलग-अलग तौर पर रेखांकित की जा सकती हैं क्योंकि ये कहानियाँ समाज के हर वर्ग की पड़ताल करती हैं और जीवन के साथ उसकी विसंगतियों से रू-ब-रू कराती हैं।-मनीषा कुलश्रेष्ठ
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