LAHU KE PHOOL

About The Book

कविता अंतर्मन में चलने वाली पीड़ा उधेड़बुन और मन के अन्य भावों को सशत्तफ़ ढंग से बयां करने का माध्यम रही हैं। कविता के संदर्भ में किसी ने कहा था यह होम्योपैथी की दवा का काम करती हैं। जैसे होम्योपैथी रोगों को ऽत्म करने की जगह रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा देती हैं इसी तरह कविता हमारी संवेदनशीलता को बढ़ा देती हैं।मैंने भी अपनी कविताओं के द्वारा प्रयास किया है कि मैं भी पाठक की संवेदनशीलता को बढ़ा सकूं। दलित संदर्भ में जहां दलितों का दुऽ-दर्द हैं वही उनकी दशा और दिशा भी वर्णित है और उनकी सुसुप्त चेतना को जगाने के प्रयन्त भी है। संग्रह में ऐसी संकलित कविताएं भी है जो सामाजिक असमानता को बताती हैं। जो लोग जाति व्यवस्था के पक्षधर है उनसे संवाद करते हुए कुछ प्रश्न भी करती हैं।
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