Leheron ki Thirkan (लहरों की थिरकन)

About The Book

इस काव्य-संग्रह को कवि ने जीवन के प्रति अपनी आस्था से संजोया है। जीवन के प्रति कवि की यह आस्था पूरे खण्ड में अनवरत बनी रहती है हालांकि परिस्थितिवश यह कहीं-कहीं नदी की धारा के समान क्षीण तो होती है पर टूटती कदापि नहीं है। कवि जानता है कि समय मुट्ठी में बंद रेत के समान हाथ में फिसलता चला जा रहा है तथा मन वल्गाराहित होकर उन्मुक्त होना चाहता है; तथापि बिखराव-भटकाव को बांध लेने एवं जीवन के बार - बार विखण्डन को समेट लेने की क्षमता कवि में है। कवि का निष्कर्ष है कि प्रफुल्लता ही जीने की कला है। विपरीत परिस्थितियों में काँटों के बीच एक फूल की तरह खिले रहना ही जीवन की सफलता है।
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