कविताओं में बिंबों का प्रयोग अत्यधिक होना शुरू हुआ है और देशज शब्दों के अनियंत्रित प्रयोग ने भाषा के स्तर पर सोचने पर विवश कर दिया है। लयात्मकता के अभाव में कविताएं सौन्दर्य रहित और गद्यात्मक लगने लगी हैं। इन स्थितियों में विमलेन्दु की कविताएं एक आशा जगाती हैं। इस संग्रह की सभी कविताएं रसास्वादन के लिए पाठकों से बौद्धिक श्रम चाहती हैं और सरलता के नाम पर भाषा से समझौता नहीं करतीं। लो! अभी बरसता हूं काव्य-संग्रह विचारों के अबाध प्रवाह के बीत चुके काल का पुनः आह्वान करती कविताओं का संग्रह है। /**/**/**/ कुमार विमलेन्दु सिंह : ऐतिहासिक पाटलिपुत्र के निवासी काशी की ज्ञान परंपरा में दीक्षित और विभिन्न कलात्मक विधाओं में गहन अध्ययन और शोध करने के क्षेत्र में डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह वर्तमान समय में एक चमकदार सितारे की तरह दिखते हैं। भाषाओं में अद्भुत दक्षता और शानदार वाचन शैली से इन्हें विश्व भर में प्रशंसकों ने सराहा है। अंग्रेज़ी और हिन्दी दोनों भाषाओं में इनकी दक्षता अत्यंत सराहनीय है। इन्हें नाटक संगीत और सिनेमा से विशेष लगाव है और साहित्य के क्षेत्र में तो इनकी प्रसिद्धि पहले से ही है। विमलेन्दु ने अध्ययन की शक्ति से एक अलग लकीर खींची है और आने वाले समय में अनेक रचनाओं के माध्यम से उनकी चमक बढ़ती ही रहेगी।
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