Lockdown Diaries

About The Book

इस संकलन में कुछ जज़्बात हैं मेरी डायरी के जो कहीं न कहीं लॉकडाउन में हम सभी के जीवन का अंश रहे। लॉक डाउन के 40 दिन मैंने अलग - अलग जज़्बातों को जिया है । और पढ़ने पर आप सभी को कहीं न कहीं उन जज़्बातों में समन्वय मिलेगा। इसके अतिरिक्त कुछ स्वरचित कवितायेँ हैं जो मेरे दिल के करीब हैं। परिचय नाम का दूँ या जज़्बातों का :- 'क्या करते हो? ' - ये सवाल तो अक्सर सुना है लेकिन क्या हो और कौन हो ये कोई जानना नहीं चाहता। और उस सवाल का एक नपा तुला सा जवाब होता है कि जी बारहवीं की परीक्षा दी है या फिर फलां कंपनी में सुपरवाइजर हूँ या फिर कि कुछ नहीं करता हूँ मैं और इन सब जवाबों में हम आँक लेते हैं एक शख्सियत को। कभी किसी ने ये तो पूछा ही नहीं कि कितने खुश हो या कि दुःख में हो क्या ? ये भी नहीं पूछा कि क्या सोचते हो ज़िन्दगी के बारे में ? क्या हैं सपने तुम्हारे ? और क्यूंकि किसी ने पूछा नहीं तो हमने कभी बताया भी नहीं। हम उस दुनिया में हैं जहाँ पढ़ाई के क्रम से लोग तुम्हें परख लेते हैं। बारहवीं में हो बेटा अभी तो बहुत कुछ करना है शादी नहीं हुई अबतक कोशिश करो जी अच्छी आमदनी वाली नौकरी कर लो कोई सी सुपरवाइज़र के तो काम पैसे बनते हैं। हमें कर्म से आंका जाता हैं आमदनी से हमारी औकात को समझा जाता हैं और जज़्बातों को समझने का किसी के पास वक्त नहीं हैं। तो क्यों न आज से हम लोगों को उनके जज़्बातों से जानने की कोशिश करें ? कुछ नया भी है और खुशनुमा भी। आप कैसे हो ? - इसी सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश कीजिये। आपके अपनों को समझिये ये जानिए कि अगर वो पढ़ नहीं रहा तो कारण क्या है ? उसको अपना समय दीजिये ; तब यकीनन आप किसी भी इंसान को बेहतर समझ पाएंगे।
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