गोरखनाथ संप्रदाय के योगी प्रेम की लोककथाओं को सारंगी की धुन पर गाते थे और घर-घर जाकर भिक्षा माँगते थे। ये कहानियाँ पीढ़ी दर पीढ़ी लोकगीतों के रूप में सुनाई जाती थीं। समय के साथ इन कथाओं ने लोक-साहित्यकारों रंगमंच कलाकारों और नौटंकियों को प्रेरित किया है जो इन्हें मेलों धार्मिक आयोजनों और अन्य समारोह में प्रस्तुत करते आए हैं।
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