वैश्वीकरण के दौर में राज्य अपनी प्रकृति को वैश्वीकरण की अवधारणा के अनुरुप परिवर्तित कर रहा है। राज्य मुख्य रुप से अपना ध्यान नियामकीय और नियंत्रणकारी कार्यो तक सीमित कर रहा है अतः राज्य कल्याणकारी राज्य से परविर्तित राज्य में बदल रहा है ऐसे मे लोक प्रशासन को राज्य द्वारा नीति निर्धारण करने में सहयोग व नीतियों को क्रियान्वित कर विभिन्न समसामयिक चुनौतियों का सामना करते हुए कुशलता जवाबदेयीता व पारदर्शिता के लक्ष्यों को प्राप्त करना है। राज्य व लोक प्रशासन के समक्ष विभिन्न सम-सामयिक मुद्दे हैं। राज्य की नौकरशाही व्यवस्था को निजी प्रशासन से प्रतिस्पर्धात्मक चुनौती मिल रही है। राज्य व लोक प्रशासन को व्यापारिक कार्यो मे विश्वव्यापी संगठनों के दवाबों का सामना करना पड़ रहा है क्योकि वर्तमान मे विकासशील देशों के विभिन्न कल्याणकारी कार्यक्रम विश्वव्यापी संगठन के भागीदारीपूर्ण अनुदान से ही चल रहे हैं । एक ओर राज्य लोक प्रशासन को वैश्वीकरण की प्रक्रिया से चुनौती मिल रही दूसरी ओर बाजारवादी नीतियों को लागू करने का अन्र्तराष्ट्रीय संस्थाओं का दवाब भी राज्य व प्रशासन के समक्ष हैं। वैश्वीकरण के चलते राज्य की लोक कल्याणकारी प्रवृत्ति और लोक सुरक्षा की अवधारणा में भी बदलाव आया है। पुस्तक में लेखक ने वैश्वीकरण और लोक प्रशासन: सम-सामयिक चुनौतियाँ भारत में लोक प्रशासन की अध्ययन विषय के रूप में सम-सामयिक चुनौतियाँ एवं प्रासंगिकता लोक निजी सहभागिता: सम-सामयिक परिप्रेक्ष्य विकेन्द्रीकरण का सैद्धान्तिक परिप्रेक्ष्य भारत में विकेन्द्रीकृत नियोजन: सम-सामयिक परिप्रेक्ष्य न्यायिक विकेन्द्रीकरण: एक अभिनव प्रयोग भारतीय संसदीय प्रजातन्त्र की नूतन अभिवृत्तियाँ उच्च शिक्षा की समसामयिक चुनौतियाँ व नीति क्रियान्वयन विकेन्द्रीकृत संस्थाओं का संस्थात्मक विकास प्रजातंत्र और विकेन्द्रीकरण प्रशासनिक व प्रजातान्त्रिक विकेन्द्रीकरण एवं विकेन्द्रीकृत संस्थाओं की सम-सामायिक स्थिति आदि बिन्दुओं पर विस्तृत चर्चा की है।
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.