Loot ka Loktantra (Vyangya Sangrah)

About The Book

समकालीन हिन्दी जगत में व्यंग्यकार सी. भास्कर राव का नाम एक जाना-सुना नाम है। वे हिन्दी व्यंग्य के क्षेत्र में एक वरिष्ठ एवं प्रसिद्ध लेखक के रूप में सम्माननीय माने जाते हैं। अब तक कई व्यंग्य संग्रह उनके प्रकाशित और प्रशंसित हो चुके हैं। व्यंग्य लेखन का उनका अनुभव वर्षों पुराना है। एक दैनिक पत्र में दस वर्षों तक व्यंग्य का साप्ताहिक कालम भी लिखते रहे। उन्होंने समाज के विविध और विभन्न विषयों पर हास्य-व्यंग्य लिखकर यह प्रमाणित किया है कि वे एक सिद्धहस्त और चर्चित व्यंग्यकार हैं। उनका प्रस्तुत व्यंग्य संग्रह उनके अन्य व्यंग्य संग्रहों से कुछ भिन्न और रोचक है। यह संग्रह हास्य और व्यंग्य दोनों तरह की रचनाओं का एक नया आस्वाद प्रदान करता है। इस संग्रह की विशेषता यह है कि इसमें छोटे-छोटे व्यंग्य लेख भी हैं और छोटी-छोटी व्यंग्य कथाएं भी। कुछ व्यंग्य तो मात्र कुछ वाक्यों का समूह है जिसकी अपनी मारक क्षमता है कुछ व्यंग्यात्मक टिप्पणियां भी हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि इसके पूर्व उनके जो भी व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हैं उनमें लगभग सभी व्यंग्य लेखों के संग्रह हैं लेकिन इस संग्रह में व्यंग्य लेखों व्यंग्य कथाओं और व्यंग्यात्मक टिप्पणियों से विविध व्यंग्यानुभव प्राप्त होते हैं। कुल मिलाकर ये रचनाएं यह बताती हैं कि लेखक के पास अपनी बात कहने का एक अलग व्यंग्यात्मक अंदाज है। उन्होंने अपनी अलग व्यंग्य शैली विकसित की है। विश्वास है कि हिन्दी व्यंग्य-जगत में इस व्यंग्य-संग्रह का स्वागत होगा। मैं यह मानता हूं कि व्यंग्य भी अन्य विधाओं की तरह ही एक स्वतंत्र विधा है। पहले जब तक व्यंग्य छिटपुट लिखे जाते रहे या फिर मात्र अखबारों में कालम के रूप में छपते रहे तब तक व्यंग्य को एक स्वतंत्र विधा के रूप में स्वीकार किया जा सकता है या नहींइस पर विवाद होते रहे लेकिन अब जितनी मात्रा में जितने विषयों पर जितनी शैलियों में व्यंग्य लिखे जा रहे हैं और हिन्दी में “व्यंग्य यात्रा“ सहित कई पत्र-पत्रिकाएं भी प्रकाशित हो रही हैं उन सबके चलते हिन्दी में व्यंग्य लेखन का विकास हुआ है। पहले हिन्दी की अलग-अलग विधाओं की जो रचनाएं प्रकाशित होती थीं उनमें व्यंग्य का पुट मिला करता था जो पाठकों को आनंदित और आह्लादित करता था परंतु अब तो हिन्दी व्यंग्य का अपना संसार ही इतना विस्तारमूलक और वैविध्यपूर्ण हो गया है कि अब यह सवाल लगभग बेमानी हो चुका है कि व्यंग्य को स्वतंत्र विधा के रूप में स्वीकार किया जाए या नहीं। यह व्यंग्य की अतिरिक्त विशेषता है कि वह एक ओर स्वतंत्र रूप में जितना लोकप्रिय हो चुका है उतना ही व्यंग्येतर विधाओं में भी उसका उपयोग रचनाओं की रोचकता या पाठकों के मनोरंजन के लिए होने लगा है।
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