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About The Book

माँ सृष्टि का बीज मंत्र है। इसमें समस्त दैवीय शक्तियाँ व्यक्त और अव्यक्त रूप में प्राण प्रतिष्ठित हैं। माँ शब्द का श्रवण नवधा भक्ति का स्रोत; संकेत मात्र का आचमन निर्विघ्न जीवन का महाप्रसाद; क्षणिक का स्पर्श परमगति का आलिंगन है। यह विविध रूपों में जन्म से लेकर मरण तक अविभाज्य परछाईं बनकर अनुगामी; सहगामी होता है। फिर चाहे जन्म देनेवाली कोख का निस्स्वार्थ संबल और ममता का सावनमय आँचल हो; धारण करनेवाली के विस्तीर्ण वक्ष का अमिययुक्त क्षुधा की पूर्ति का साधन हो; सीपमुख में पड़े स्वाति बूँदरूपी अनमोल मोती हो; त्रिताप हरनेवाली प्राणदायिनी महासंजीवनी हो; सुमन पालना सदृश कुटुंब; गाँव; समाज का अक्षुण्ण आनंदमयी सान्निध्य हो; निराशा भरी विजन डगर में निरा संभ्रमित पथिक को पाषाण स्तंभ का मूक दिशा-दर्शन और समस्त पापों से मुक्ति का यज्ञानुष्ठान हो; माँ की आदि शक्ति सी महत्ता; गगन सी उच्चता; सर्वेश्वर सी श्रेष्ठता; धरित्री सी विशालता; हिमगिरि सी गुरुता; महोदधि सी गहनता आदि के पावन कर्णप्रिय संबोधन पल-पल मातृत्व; कर्तव्य; नेतृत्व का आभास कराकर जीवन को सार्थक्य पथ की ओर प्रेरित; मार्गदर्शित करते हैं। जिसमें धन्यता का अनियमय आनंद जीवनदीप को प्रदीप्त कर मुक्ति का अधिकारी बनाता है और मातृत्व का साक्षात्कार कर पग-पग पर सुमन शय्या बनकर बिछ जाना ही अंततः अंतकरण को भाता है।माँ की महत्ता; उसके ममत्व; त्याग; समर्पण और सर्वस्व बालक पर न्योछावर करने की अतुलनीय और अप्रतिम प्रकृति का नमन-वंदन करने हेतु कृतज्ञता स्वरूप लिखी यह पुस्तक हर पाठक के लिए पठनीय है।
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