“यह एक ज़रूरी किताब है” लेनिन ने ‘माँ’ के बारे में कहा था “क्योंकि बहुतेरे मज़दूर सहज बोध से और स्वतःस्फूर्त तरीके से क्रान्तिकारी आन्दोलन में शामिल हो गये हैं और अब वे ‘माँ’ पढ़ सकते हैं और इससे विशेष तौर पर लाभान्वित हो सकते हैं।” यह उपन्यास वास्तविक घटनाओं पर आधारित है जो वोल्गा के किनारे सोर्मोवो नगर में बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में घटित हुईं। लेखक ने अपने प्रमुख चरित्रों — युवा सर्वहारा बोल्शेविक पावेल व्लासोव और उसकी माँ निलोवना में जो अभिलाक्षणिकताएँ निरूपित की हैं उनमें से बहुतेरी वास्तविक जीवन के दो चरित्रों — प्योत्र अन्द्रेयेविच और आन्ना किरिलोवना ज़ालोमोव से उधार ली गयी हैं जिनसे गोर्की के दोस्ताना सम्बन्ध थे। लेकिन गोर्की की यह पुस्तक महज़ एक मज़दूर-परिवार की नियति का चित्रण करने के बजाय समूचे सर्वहारा वर्ग के भवितव्य को विलक्षण शक्ति के साथ चित्रित करती है। पाठकों के लिये यह सूचना दिलचस्प हो सकती है कि ‘माँ’ सबसे पहले रूसी के बजाय अंग्रेज़ी भाषा में प्रकाशित हुई थी। यह 1906 का वर्ष था जब ज़ारशाही के अत्याचार के शिकार गोर्की आप्रवासी के रूप में विदेश में रह रहे थे। 1905-07 की पहली रूसी क्रान्ति के समय लिखी गयी यह पुस्तक आज भी समूची दुनिया के पाठकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है। दुनिया की पचास से अधिक भाषाओं में इसके सैकड़ों संस्करण निकल चुके हैं और करोड़ों पाठकों के जीवन को इसने प्रभावित किया है।
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