प्राचीन काल से ही मध्य भारत संभाग अपने अंदर विभिन्न आयामों को समाहित किये हुए है जो विभिन्न कालों और परिस्थितियों के अनुसार स्वयं में परिवर्तन को सहर्ष स्वीकार करते हुए अपनी बहुआयामी विकास यात्रा को निर्बाध रूप से गतिमान बनाये रखने में सफल रहा है। चाहे प्राचीन काल का साहित्यिक काल हो या फिर पूर्व मध्य काल या मध्य काल का ऐतिहासिक काल हो या फिर स्वतंत्रता पूर्व या स्वतंत्रता पश्चात का काल हो प्रत्येक काल ने मध्य भारत संभाग पर अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी है। चाहे फिर वह प्रत्यक्ष रूप से हो या अप्रत्यक्ष रूप से। वर्तमान में भी यह यात्रा निर्बाध रूप से विभिन्न आयामों को स्वयं में आत्मसात करते हुए विकास के पथ पर निरंतर अग्रसर हो रही है।किसी भी क्षेत्र तथा काल के प्रतिनिधित्व करने वाले कारकों में इतिहास और संस्कृति का नाम मुख्य रूप से आता है जिसकी पुष्टि इस पुस्तक की रचनाओं से भी होती है। विद्वानों का कथन है कि यदि हम किसी काल के इतिहास और संस्कृति पर गहन दृष्टि डालेंगे तो यह पाएंगे कि किसी भी काल विशेष या क्षेत्र की ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक यात्रा समान रूप से समानांतर ढंग से चलती है और दोनों ही कारक एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं। साथ ही साथ एक-दूसरे को प्रभावित भी करते रहते हैं। इस संभाग के बहुआयामी जीवन की एक झांकी दिखाने का एक छोटा सा प्रयास इस पुस्तक में किया गया है। इस संभाग में बहुआयामी जीवन में जहां एक ओर ऐतिहासिक कलाकृतियों एवं धरोहरों ने अपनी छटा बिखेरने में संकोच नहीं किया है वहीं दूसरी ओर इस संभाग के जनजातीय जीवन में विद्यमान सांस्कृतिक धरोहरों ने भी संभाग की बहुआयामी संपदा में अतुलनीय वृद्धि की है।
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