MADHYAKALIN KAVITA VIMARSH KE NAYE AAYAM

About The Book

संत कहे जानेवाले कवि सही अर्थ में रमते जोगी थे। वे सत्संग करने कहीं-से कहीं चले जाते थे उनका कोई एक देश नहीं था वे कविता नहीं करते थे क्योंकि कविता करना उनका काम नहीं था वे रूई धुनते थे कपड़ा बुनते थे कपड़े सिलते थे दुकानदारी करते थे जूते बनाते थे खेती करते थे पर उनका काम भी जीविका नहीं था। वह फक्कड़ जीवन था। विशाल सत्ता के अनुभव को समर्पित कविता उनके काम से उनके फक्कड़पन से फूट पड़ती थी क्योंकि वे कुछ-न-कुछ गुनगुनाते हुए ध्याते हुए अपना काम करते थे। कविता उनके भीतर हो रही हलचल की हिलोर मात्र है।
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