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About The Book
Description
Author
ये सभी नाटक और एकांकी देश की आजादी के बाद तीन दशक के उस दौर में लिखे गए जब चारों ओर इस उम्मीद का उजास था कि यह दुनिया एक खूबसूरत दुनिया में बदलेगी। गरीबी गैरबराबरी जंग फिरकापरस्ती दुनिया से कूच कर जाएगी। इसी आशा के साथ ये सातों नाटक रचे गए। ये उस वत्तफ़ को दर्ज करने की कवायद भी रहे। यूं तो पिताजी (शोभाराम शर्मा) ने और भी कई नाटक व एकांकी लिखे उनका मंचन भी हुआ मगर लिखे को संजोने की लापरवाही में उनकी स्क्रिप्ट नामालूम कहां गुम हो गई। मेरे दादाजी 1962 में भारत-चीन युद्ध के वक्त पिताजी का काफी लिखा-छपा चुपचाप गांव ले गए। बेटा किसी मुसीबत में न फंसे शायद इस डर से उन्होंने उसमें से बहुत कुछ जलाकर नष्ट भी कर दिया।... ...दुनिया इस दौर में बहुत बदल गई है। बीसवीं सदी ने मनुष्यता को जो आधी-अधूरी उपलब्धियां नैतिक मूल्य दिए थे उन्हीं पर संकट है। न्याय संगत आदर्श समाज का सपना तो दूर इस दुष्कर समय में मनुष्यता के मूल्य ही बच जाएं इसके लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। मगर फिर भी इन लघु नाटकों के जरिए अतीत की ओर झांक कर भविष्य का सपना तो फिर से गढ़ा ही जा सकता है। -अरविंद शेखर