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About The Book
Description
Author
मुझे नहीं मालूम कि कविता बैठकर कैसे लिखी जाती है मैंने सदैव ही चलते-चलते कविताएँ लिखीं। जहाँ जैसे भाव दिखे हृदय के तारों से टकराए और कविता की परिणिति स्वतः होती गई। प्रसन्नता में दुख में पीड़ा के क्षणों में प्रार्थना में प्रेम में प्रत्येक स्थान पर जहाँ-जहाँ इस सृष्टि पर भाव है वहाँ-वहाँ उन भावों के सरोवर में मेरे कविता रूपी कमल स्वतः खिल जाते हैं। ‘महालय’ मेरी कविताओं का एक ऐसा संग्रह जिसमें अनेक प्रकार के भावों व विचारों का समावेश है। ‘महालय’ मेरे हृदय की अंतर्ध्वनि है मेरी साहित्य यात्रा का प्रथम पड़ाव है।
~माधुरी महाकाश