Mahan Ganrajya Grehmandala( Gondwana Ganrajye Ka Aitihasik Vivechan)
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इतिहास का अध्ययनविश्लेषणउपलब्ध तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकालना एक कठिन व विवादास्पद कार्य है।अतीत की घटनायें अपनी तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार घटित हुई होती हैंपर आगे चलकर जब वे इतिहास बनती हैंतो उसकी व्याख्यादेखने वाले के दृष्टिकोण व आग्रह पर निर्भर होता है। इतिहास केवल ग्रंथों में ही नहीं होता हैलोकस्मृति में भी रहता हैजो दीर्घकाल तक संरक्षित रहता है।यह वास्तव में आम लोगों का इतिहास होता हैजबकि ग्रंथों के रूप में लिखित इतिहास की सीमा सामान्यतः विद्वानों तक ही रहती सीमितरहती है। आधुनिक समय में वैज्ञानिक साक्ष्योंतर्कों के आधार पर इतिहास को समझने-परखने की विधि विकसित हुई है। इससे पूर्व की ऐतिहासिक व्याख्याएं बदलती दिख रही हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के मध्य भाग को पुराणों में दण्डकारण्य कहा गया है।प्राचीन काल में यह मौर्यसातवाहनवाकाटकराष्ट्रकूटयादव साम्राज्यों के अधीन रहा है ।इसके पश्चात चंदेलपरमारकलचुरीयों के उत्थान-पतन का साक्षी रहा है।कलचुरीयों के अवसान के बाद लगभग दो शताब्दियों तक इस क्षेत्र का इतिहास शून्य सा रहा।इस शून्यता ने इतिहासकारों को इतना अधिक प्रभावित किया कि इसके बाद के1480ई.से 1564ई.तक 83 के वर्षों के सुनहरे इतिहास को भी एक पैराग्राफ में खत्म कर देते हैंजबकि शून्यकाल में भी गढ़ालाँजीदेवगढ.चाँदा आदि छोटे-छोटे गोंड आदिवासी राज्य प्रजा को एक व्यवस्था प्रदान कर रहे थे।इसी कालखण्ड में गढ़ा राज्य उत्कर्ष की ओर बढ़ते हुए वृहद् गोंडवाना गणराज्य के रूप में स्थापित हो रहा था।जिस समय गढ़ा राज्यमध्यभारत का स्वर्णिम इतिहासरच रहा था उस समय उत्तर भारत में विदेशी आक्रांताओं और देशी राजाओं में एक दूसरे पर कब्जे की होड़ मची हुई थी।
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