Maharang


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About The Book

जिसकेजन्म को ‘मृत्यु’ कहा गया । और मृत्युको ‘अमरता’ । जिसनेमार्गचुना था प्रेम का । परन्तुचला सदैव युद्ध भूमि पर । होठों पर थी बांसुरी । परन्तु गूंजता था युद्धघोष शंख का । वो तैयार था अपनों केलिए मातृभूमि केलिए । परन्तु उसे तैयार होना था सब के लिए । समस्त संसार केलिए । सुदूर अन्तरिक्ष मेंरहनेवालों केद्वारा पृथ्वी एक बार फिर तैयार थी । उनके प्रयोगों केलिए । अतीत में उन्होंने कई भगवान बनाये। परन्तुकोई भी पूर्ण नहीं था । उन्हेंअब ‘पूर्णता’ की तलाश थी शीघ्र ही । कोई तो होगा जिसे वो चुन सकेंअपनेलिए । उस आकाशीय ज्ञान केलिये जो सदियों तक मनुष्य का मार्गदर्शन करेगा । कोई था दूर कालिंदी केकिनारे। वृंदा के वृक्षों केबीच अपनी प्रेयसी केसंग । शांत ह्रदय । कुछ रहस्यों की परतों मेंलिपटा । अनजान । परन्तु उसे जाना था दूर मरुस्थल मेंभटकने। शवों केबीच अपनेशत्रुओं केसंग । बेचैन ह्रदय । खुलेसंसार केसामने। वो तैयार था अपनेचुनेजानेकेलिये। वो भी तैयार थेउसेचुननेकेलिये। एक और भगवान बनानेकेलिये। गोविन्द को कृष्ण बनाने के लिये । भगवान केभगवान बननेकी कहानी । परग्रहियों की जुबानी। कल्कि केआते-आतेबहुत देर हो जायेगी । उन्हें आज भी ज़रूरत है किसी को भगवान बनाने की । भलेही वो पूर्णना भी हो । चलेगा ।
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