आल्हा ऊदल की महागाथा जनमानस में गायन के द्वारा मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती रही है। यह एक लोक महाकाव्य है। इसमें उस काल की राजनैतिक सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक तथा अर्थव्यवस्था का संपूर्ण वर्णन मिलता है। यह एक ऐसी धरोहर है जो हर आल्हा गायक अपने बेटे या शागिर्द को देकर जाता है। बुंदेलखंड में कई लोगों के पास हस्त लिखित आल्हा की प्रतियां आज भी हैं। उसमें से कुछ देवनागरी शैली में भी हैं पर गाने वाले उसे बुंदेली शैली में ही गाते हैं। आज भी भारत के कई हिस्सों में यह अपने-अपने तरीके से गाया और सुना जाता है। अभी तक यह जहां भी उपलब्ध हुआ काव्य-शैली में ही है। इसे पहली बार गद्य-शैली में क्रमबद्ध किया जा रहा है।
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