“हम जब भी br>तेरे शहर में लौट आते हैं br>तेरी निशानी उन गलियारों में ढूंढते हैं हमारा कारोबार खोई मोहब्बत को पाने का है हम रोज़ अपनी अनारकली दीवारों में ढूंढते हैं “ “मैं और ये ज़िन्दगी” महज़ एक किताब नहीं बल्कि मेरी ज़िन्दगी का आईना है इसमें जो शायरी है वो ज़िन्दगी के मुख़्तलिफ़ एहसासों को बयां करती है इनमे हंसी भी है और ग़म भी इसमें रफ़्तार भी है और कईं ठहराव भी संजीदगी भी है और जीवन की कईं कड़वी सच्चाइयां भी और भी रंग हैं ज़िन्दगी के इस किताब में आप सबने ये एहसास ज़िन्दगी के सफ़र में जरूर कभी ना कभी महसूस किये होंगे उम्मीद है ये किताब आपको अपनी ज़िन्दगी का आईना लगे और आप इसको उतने ही प्यार से नवाज़ें जितने प्यार से मैनें इसे लिखा और आप तक पहुंचाया है.
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