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About The Book
Description
Author
वो कहते हैं न कि जाके पांव न फटे बिवाई सो क्या जाने पीर पराई।। बस इन्हीं भावनाओं के उदगारों ने मुझे लिखने के लिए विवश किया । मेरा ये मानना है कि अगर आपको दूसरों के बारे में सोचने और समझने का वक्त नहीं तो आप कवि या लेखक नहीं बन सकते। क्योंकि जहां करुणा दया या सहानुभूति है वहीं कविता है वहीं कहानी है क्यूंकि ये मनोद्गार ही तो कविता हैं कहानियां हैं। एक सच्चा कवि/लेखक एक सच्चा मनुष्य भी होता है। As वर्ड्सवर्थ says Poetry is spontaneous overflow of powerful feelings- It takes its origin from emotions recollected in tranquility. मेरी लेखनी का मेरे जज्बातों से गहरा ताल्लुक है ये वहीं लिखता है जो मेरे जज़्बात कहते हैं ये वो नहीं करता जो मेरे हालात कहते हैं। ये पुस्तक मेरी उसकी हम सबकी कहानी को कविताओं में बयां करती है। ये सभी बड़ों छोटों मित्रों के आशीर्वाद स्नेह एवं मार्गदर्शन का प्रतिफल है। वैसे भी .... कविता किसकी सुनती है! ये तो बस बाढ़ की नदी सी बहती जाती है...बहती जाती है...।।“ साभार माता - पिता को सभी मित्रों को स्नेहीजनों को एवं बुक्स क्लिनिक पब्लिशिंग हाउस बिलासपुर को। मनीष कुमार पाठक संघर्ष