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About The Book

मानव जीवन उत्तरोत्तर जटिल होता जा रहा है। पुरानी परम्पराएँ क्षीण हो रही हैं और जीवन दर्शन में नए मूल्य अपना स्थान बनाने को सक्रिय है। पुराने प्रस्थापित मूल्यों और नए मूल्यों के बीच संघर्ष सतत चलता रहता है। पुराने विस्थापित हो रहे और नए मूल्यों के प्रस्थापन मनुष्य के विवेक में स्थान पाने का प्रयास करते हैं। यही स्थिति मनुष्य को अपने लक्ष्य के प्रति प्रेरित और समर्पित होने की दिशा में दिग्भ्रमित करती है। मनुष्य के जीवन में इसी समय प्रेरक साहित्य की आवश्यकता और सघन हो जाती है। प्रेरणा मनुष्य को उसकी छुपी हुई क्षमता को उजागर कर उसके कार्य करने की शक्ति को बढ़ा देती है और उससे अपने कार्य को सुव्यवस्थित विवेकपूर्ण तथा तार्किक ढंग से करने का अवसर प्रदान करती है। मनुष्य द्वारा लिए और किए गए विवेकपूर्ण निर्णय उसे कठिन से कठिन परिस्थिति में दृढ़ और धैर्यवान बने रहने में सहायक सिद्ध होते हैं। डॉ. सत्या सिंह की प्रस्तुत कृति मैं हूँ ना मोटिवेशन या प्रेरणा के विषय को कोई सामान्य पुस्तक नहीं है। डॉ. सत्या सिंह स्वयं बनारस- हिन्दू विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान विषय की अध्येता रही है। मणिकांचन संयोग ऐसा कि उन्हें जीवन में पुलिस प्रशासन व्यवस्था की सेवा से वासीच्छा अनुप्त हुआ। बाजार में उपलब्ध अन्य लेखकों से कहाँ इस विषय पर अधिकार अध्ययन और मनने से है सत्या सिंह का है। आपके पुस्तक लाने में ना की पति सर्वदा आपको आश्वस्त करती रहे कि मैं हूं ना !! । : सुधेन्दु ओझा कथाकर
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