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About The Book
Description
Author
जिद्दू कृष्णमूर्ति का नाम आध्यात्मिक जगत् में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। जब वे मात्र तेरह वर्ष के थे तभी उनमें एक आध्यात्मिक गुरु होने की विशिष्टताएँ दृष्टिगोचर होने लगी थीं। उन्होंने न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी आध्यात्मिकता का परचम लहराया।जे. कृष्णमूर्ति के विचार केवल आध्यात्मिक ही नहीं बल्कि भौतिक दृष्टि से अत्यंत महवपूर्ण हैं जो जाति धर्म और संप्रदाय में उलझे असमंजस में फँसे और दिग्भ्रमित हुए लोगों का यथोचित मार्गदर्शन करते प्रतीत होते हैं।उन्होंने मानव-जीवन के लगभग सभी पहलुओं को अपनी विचारशीलता के दायरे में लाने का सफल प्रयास किया है। किंचित् मात्र भी ऐसा नहीं लगता कि जीवन की कोई भी जटिल वीथि उनकी दृष्टि से ओझल हो गई हो। उनके जीवन का परम लक्ष्य विश्व को शांति संतुष्टि और संपूर्णता प्रदान करना था ताकि ईर्ष्या द्वेष और स्वार्थ का समूल नाश किया जा सके। वे अपने जीवन-लक्ष्य में काफी हद तक सफल रहे। जो भी उनके संपर्क में आया मानो उनका ही होकर रह गया।उनकी प्रेरक वाणी के कुछ रत्न इस पुस्तक में संकलित हैं।