क्या आपके भीतर प्रश्र्न है? क्या आपके भीतर अपना प्रश्र्न है? क्या जीवन आपके मन में प्रश्र्न नहीं उठाता? क्या जीवन आपको जिज्ञासा से नहीं भरता? क्या जीवन आपके सामने यह सवाल खड़ा नहीं करता है कि मैं कौन हूं? यह क्या है? क्या आप एकदम बहरे और अंधे हैं? क्या आपके हृदय में कोई कोई जिज्ञासा ही पैदा नहीं होती है? अगर होती हो कोई जिज्ञासा अगर होता हो कोई प्रश्र्न खड़ा अगर होती हो कोई प्यास मन में जानने की पहचानने की जीवन के सत्य को पाने की तो उसे इकट्ठा कर लें और उसे एक प्रश्र्न बन जाने दें। क्योंकि जो और चीजों के संबंध में पूछने जाता है वह दूर निकल गया उसने बुनियादी प्रश्र्न छोड़ दिया। बुनियादी प्रश्र्न तो स्वयं से शुरू होता है--मैं कौन हूं? - ओशो
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