चौदहवीं शताब्दी कश्मीर की युगांतरकारी संत कवयित्री ललद्यद जिसे ललेश्वरी के नाम से भी जाना जाता हैके बीहड़ जीवन-संघर्षकाव्य दर्शनवाँछा सहित उनके समय और तनावों को केंद्र में रखकर वरिष्ठ हिन्दी कवि अग्निशेखर जी ने मैं ललद्यद शीर्षक से यह महाकाव्यात्मक काव्य रचा है। ललद्यद के जीवनव्यक्तित्व और कृतित्व को समग्रतः में कौन भारतीय जिज्ञासु पाठक लेखक बुद्धिजीवी या सामान्य नागरिक जानना नहीं चाहेगा। सात सौ वर्ष बाद भी उनकी ख्याति उनकी प्रासंगिकताउनकी उपस्थिति का आलोक जस का तस बना हुआ है।उसे जनमानस ने स्नेहमयी माँ का दर्जा दिया है। प्रलेक प्रकाशन के लिए ललद्यद पर पहली बार ऐसी महत्वपूर्ण महाकाव्यात्मक कृति प्रकाशित करना गौरव की बात है।
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