थर्ड जेंडर विमर्श में उत्तराधुनिकता का प्रारंभ उपन्यास ‘मैं तेरे इंतज़ार में’ से बेरोज़गारी शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्र दोनों की विकट समस्या है। ‘’राकेश शंकर भारती द्वारा भी अपने उपन्यास का प्रारंभ ग्रामीण युवक की बेरोज़गारी से प्रारंभ करते हुए उसके भारत की राजधानी दिल्ली तक आने तथा अल्प आय में गुज़ारा करने की तकलीफ़ का बहुत ही सहृदयता के साथ चित्रण किया है। चूँकि लेखक स्वयं युवा है और कुछ वर्ष पहले तक उन्होंने स्वयं भी बिहार से जे. एन. यू. आकर अध्ययन के दौरान बेरोज़गारी एवं आर्थिक तंगी को बहुत ही गहनता से जिया है। इसकी झलक उपन्यास के प्रारंभ में मिलती है। बेरोज़गारी ही होती है जिसकी वजह से उपन्यास के नायक दलवीर पुरूष वेश्यावृत्ति (जिगोलो) के क्षेत्र में उतरता है। जिगोलो संस्कृति भारत के न सिर्फ महानगरों में बल्कि प्रमुख बड़े शहरों में अपने पाँव पसारती जा रही है। भारत में दिल्ली मुंबई कोलकाता भोपाल गोवा आदि बड़े शहरों में यह व्यापार ख़ूब फलफूल रहा है। दिल्ली में सरोजनी नगर लाजपत नगर पालिका मार्केट और कमला नगर मार्केट समेत कई क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ रात 10 बजे के बाद जिगोलो का मार्केट सजता है। जहाँ अमीर और शौकीन महिलाएँ इन मर्दों की बोली लगाकर उनकी कीमत तय करती हैं। ये बोली कुछ घंटों से लेकर एक रात तक की होती है। जिगोलो मार्केट में मर्दों की मुँहमाँगी कीमत दी जाती है। वैसे तो ये कारोबार छुपकर किया जाता है लेकिन दिल्ली के कई इलाकों में यह खुलेआम भी होता पाया जाता है। वैसे भी बुराई बहुत जल्दी फैलती है। बड़े-बड़े कुलीन एवं धनी परिवारों में पुरूषों को अपने घर की स्त्रियों के सुख की चिंता संभवत: आर्थिक सुदृढ़ता एवं भौतिक सुख सुविधाओं की पूर्ति के रूप में ही रहती है।
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