मैं वो शंख महाशंख सुपरिचित कवि अरुण कमल के इस पाँचवें संग्रह की कविताएँ अनेक स्वरों का स्तबक हैं। मूल सर्वव्याप्त स्वर तो स्वयं कवि का है लेकिन वह स्वर एकाकी नहीं वरन् शंख महाशंख स्वरों से गठित वृन्द स्वर है। कोई कवि केवल अपना प्रवक्ता नहीं होता वैसे तो वह किसी का भी प्रवक्ता नहीं होता; लेकिन उसमें समस्त जन एवं समस्त जीव लोक एवं ब्रह्मांड अपने लिए स्थान पा लेते हैं। इसीलिए वह केवल एक खंड या कोटि की ओर से नहीं बल्कि सबकी ओर से बोलता है। सबकी बोली बोलता है। ‘मैं वो शंख महाशंख’ इसी तरह अर्थवान होता है। साथ ही देखने की बात यह है कि जो शंख महाशंख है वह गणना से बाहर है। अन्तिम गिनती यानी महाशंख भी इस पहाड़े से बाहर है। अरुण कमल की कविताएँ उन्हीं शंख महाशंख लोगों बाहर कर दिए गए गणना से छूटे हुए गरीब निर्बल किन्तु स्वाभिमानी संघर्षशील लोगों की कविताएँ हैं। यह पूरा संग्रह ऐसे ही चरित्रों प्रसंगों एवं बिम्बों से भरा हुआ है। इस कारण निश्चय ही इस संग्रह का जैसा कि अरुण कमल के सभी संग्रहों का एक स्पष्ट राजनीतिक मन्तव्य भी है। भूमंडलीकरण निजीकरण यानी पूँजीवाद के इस भयानक दौर में अरुण कमल उनके साथ हैं जो जीवन के बाहर धकेले जा रहे हैं। ये उन्हीें लोगों की कविताएँ हैं। ऐसी विविधता स्वरों का ऐसा वर्णक्रम बोली और संवाद की ऐसी विपुल भंगिमाएँ अन्यत्र दुर्लभ हैं। एक बार फिर अरुण कमल जीवन का सन्धान करते हुए अप्रत्याशित सौन्दर्य की सृष्टि करते हैं। ऐसी सघनता बिम्बों की ऐसी वीथि एवं शब्दों के आन्तरिक संगीत का ऐसा प्रस्फुटन विरल है। गहरी मार्मिकता एवं अपनापन से भरी ये कविताएँ प्रत्येक सहृदय पाठक के लिए सहज सुगम हैं जबकि एक अन्य स्तर पर इनकी संश्लिष्टता अतिरिक्त ध्यान तथा यत्न की आकांक्षा भी कर सकती है। अरुण कमल जीवन का खनन करते हैं नए अयस्कों की खोज और फिर उनका शोधन। इसीलिए उनकी कविताएँ जीवन के बारे में जीवन के अर्थ और मूल्य के बारे में बात करने को विवश करती हैं। इन कविताओं की एक और विशेषता है इनका खुलापन किसी निगेटिव फोटो की तरह का खुलापन और अनिश्चय और सम्भावना। इसीलिए अरुण कमल को यह दुनिया निगेटिव फोटो सरीखी लगती है।
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