*****मलखान सिंह की कविता संवेदना और शिल्प***** 'सुनो ब्राह्मण' और 'ज्वालामुखी के मुहाने' कविता संग्रह से हिंदी पट्टी में अपनी विशेष पहचान बनाने वाले विद्रोही कवि मलखान सिंह से कौन परिचित नहीं है। आज वे हिंदी कविता के अमिट हस्ताक्षर हैं। प्रस्तुत यह आलोचनात्मक पुस्तक 'मलखान सिंह : संवेदना और शिल्प' उन्हीं के साहित्यिक अवदानों को प्रकट करने वाली महत्वपूर्ण किताब है। सूचना के इस अपरिमित युग में जब सारे संसाधनों पर हर किसी की पहुँच होने की बात की जा रही है तभी इस दुनिया में एक बड़ी आबादी के बच्चे ‘भोजन’ के लिए तरस रहे हैं. इन सामाजिक सांस्कृतिक विडम्बनाओं पर कवि की दृष्टि नैसर्गिक है. इसलिए 'भूख' उनकी कविता में बारबार दर्ज होता है। कवि अपने आसपास सबसे पहले झांकता है. जाति और धर्म के सवालों से रोज टकराता है. आमजन की पीड़ा को उनकी छटपटाहट को शब्दों में पिरोने की कोशिश करता है. कवि की चिंताओं में भूमंडलीकरण विश्वीकरण नवसाम्राज्यवाद नवउदारवाद जैसे भारी भरकम शब्द भले न हों पर वह जिस पीड़ा को दैनंदिन जीवन में झेलकर बड़ा हुआ है वे सारे शब्द इस पीड़ा के आगे बहुत बौने हो जाते हैं. इसलिए बारबार उनकी कविताओं में एक तड़पते मनुष्य की गूँज दलित जीवन की व्यथा और परिवर्तन की आहट सुनाई देती है.
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