“श्रीमद्भगवद् गीता” जिसे पाँचवाँ वेद कहा गया है। महाभारत का एक महत्वपूर्ण वो अध्याय है जिसे यदि मानव अपने जीवन में आत्मसात कर ले फिर कभी भी वो आशा-निराशा के भ्रमित जाल में नहीं फँसेंगे। आशा-निराशा ही सुख-दुःख के कारण हैं। विवेक के नाश के कारण भी ये आशा-निराशा लाभ-हानि हैं। ये ही मानव को पतन की ओर ले जाते हैं यही संदर्भ श्रीकृष्ण के वचनामृत से अर्जुन के लिये निसृत किया गया मूल स्त्रोत है।
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