अपने उद्घोषित संकल्पों के प्रति समर्पित कुमुद की छोटी-छोटी कविताएं जहाँ एक ओर चिंतन के धरातल पर प्रौढ़ता का आभास देती हैं वहीं उनका संवेदनशील मन अनायास ही अपने मानव-सुलभ एहसासों में डूबने लगता है।<br>- डॉ. चन्द्र त्रिखा<br>मन जोगिया पढ़ने से झनझनाहट - सी हुई बार-बार पृष्ठों को इधर-से-उधर उधर - से - इधर कर-करके फिर पढ़ने की तांघ- जैसे किसी अपने-से को पुनः-पुनः देखने मिलने और मिल-बैठ बतियाने की चाह । चन्द शब्दों में मन जोगिया के अथाह को समेटने की चाह दुःसाहस होगा। इसे पढ़ना ही ज़रूरी है इसे जीने के लिए।<br>- सुमेधा कटारिया<br>कुमुद जी के विचारों के संवेदनशील और आध्यात्मिक मन का दर्शन कर पाएँगे। आप अपनी निजी सोच को सामूहिक सोच में परिवर्तित कर सकने में समर्थ हैं। अति संवेदनशीलता ने उन्हें कविताई का हुनर बख्शा है।
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