हिंदी में समाजशास्त्रीय आलोचना की मजबूत नींव रखने वाले आलोचक मैनेजर पाण्डेय लोक जीवन से गहरे संपृक्त व्यक्ति हैं। भक्ति आंदोलन और सूरदास का काव्य उनकी महत्त्वपूर्ण पुस्तक भले ही है किंतु वे तुलसीदास से अधिक प्रेरित व प्रभावित हैं। तुलसीदास के 'संग्रह-त्याग न बिनु पहिचाने' से वे अपना आलोचनात्मक विवेक निर्मित करते हैं। अपने तमाम आलोचनात्मक अनुसंधान के माध्यम से उन्होंने साहित्य के इतिहास लेखन में नई कड़ियों को जोड़ा है 'संगीत रागकल्पद्रुम' के विभिन्न खण्डों को खोज कर उनमें से मुगलकालीन शासकों की हिंदी कविताओं को प्रकाश में लाना हो या 'लोक गीतों और गीतों में 1857' की खोज करना साहित्य के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ना है।
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