यद्यपि मेरी पढ़ाई लिखाई विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में हुई और मेरा कार्य-क्षेत्र भी बहुराष्ट्रीय संस्थानों के सूचना प्रौद्योगिकी प्रबन्धन में रहा मैंने सदा ही स्वयं को हिन्दी-साहित्य से जुड़ा हुआ पाया है। इस जुड़ाव से मैंने निरन्तर आंतरिक प्रेरणा प्रोत्साहन व उमंग प्राप्त की है ।बालपन का प्रातःकाल अपने पितामह (बाबा) के पूजापाठ तथा पिताजी के श्रीरामचरितमानस सस्वरपाठ श्रवण से व्यतीत हुआ। स्वभाव वश हिंदी में मेरी रूचि अति प्रगाढ़ होती गयी ।विद्यालयों व विश्वविद्यालयों से शिक्षा ग्रहण के अतिरिक्त गाँव के नित्य ग्रामीण जीवन आस-पास के वातावरण से समाज के कार्यकलापों से भी शिक्षा ग्रहण करने का सदैव प्रयास किया है । अपने अमरीका कार्यकाल के दौरान हिन्दी भाषा के काव्य की रुचि को पूरा करने के लिए यदा-कदा मैं एकाध कविता लिख लेता था। परन्तु जब वर्ष २०२० के शुरू में ही कोविड महामारी ने घर के ही भीतर परिरुद्ध कर दिया मैंने इस समय का सदुपयोग अपने धर्म ग्रन्थों श्री वाल्मीकि रामायण श्रीमद्भागवत महापुराण श्रीरामचरितमानस श्रीमद्भगवत गीता श्री महाभारत के पाठ से किया। इस लगभग डेढ़ वर्ष के कालांश को मैंने अपने अनुभवों के अनुसार पद्यबद्ध करने का विनयपूर्ण प्रयास किया है ।
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