Manav Sanchar ka Paridrishya
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About The Book

संचार की अपनी एक अवधारणा रही हैं संचार को विभिन्नव विद्वानों ने प्रारूप सिद्धांतों परिभाषाओं आदि के द्वारा परिभाषित किया है। संचार सभी जीवधारियों द्वारा किया जाता है अगर कहा जाए की ‘जीवन ही संचार’ है तो कोई आतिशयोक्ति नहीं होगी। सभी जीवधारी अपने अनुसार संचार करते है। लेकिन हम यहाँ मानव की बात करते है। मानव समाज की इकाई हैं मानव अपने मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के एक-दूसरे से संपर्क करता हैं। मानव प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अपने आपकों समाज वेफ साथ जोड़ता है। सामाजिक निरंतरता को बनाए तथा बचाए रखने के लिए संचार के विविध विधाओं का होना अनिवार्य है। इसकी अनिवार्यता का अनुमान बड़े ही आसानी से लगाया जा सकता है क्योंकि समाज की प्रत्येक क्रिया संचार पर ही निर्भर हैं। उदाहरणार्थ मानव संचार की मदद से जैसे-जैसे सांस्कृतिक अभिवृत्तियों मूल्यों और व्यवहारों को आत्मसात करता जाता है वैसे-वैसे जैविकीय प्राणी से सामाजिक प्राणी बनता जाता है। इस प्रकार संचार तथा सामाजिक जीवन के बीच काफी गहरा सम्बन्ध परिलक्षित होता है। सामाजिक सम्बन्धों के लिए पारस्परिक जागरूकता का होना जरूरी है। पानी-गिलास कलम-दवात पंखा -बिजली के बीच सम्बन्ध होता है लेकिन उसे सामाजिक सम्बन्ध नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इन के बीच मानसिक जागरूकता का अभाव होता है। अतः मानसिक जागरूकता के अभाव में सामाजिक सम्बन्धों का निर्माण संभव नहीं है।
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