मानव अधिकार की अवधारणा एक सुसभ्य समाज की अवधारणा है जिसमें किसी व्यक्ति या व्यक्ति के समूह को उत्पीड़न और यातनाओं से मुक्त जीवन जीने का अधिकार प्राप्त होता है। अतएव मानव अधिकार किसी भी मानव विशेष के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। मानवीय गरिमा से संबंधित समकालीन समाज की यह अवधारणा विभिन्न रूपों में सदैव प्रासंगिक रही है। पिछले कुछ समय से मानवाधिकार का सिद्धान्त एवं व्यवहार राजनीति विज्ञान के एक महत्त्वपूर्ण पहलू के रूप में विकसितहुआ है। आधुनिकता एवं उत्तर-आधुनिकता के बदलते परिवेश में जहाँ वृहद् स्तरपर सामाजिक आर्थिक राजनैतिक सांस्कृतिक एवं अन्य सभी क्षेत्रों में परिवर्तन हो रहे हैं वहाँ मानवाधिकार की अवधारणा और अधिकार और भी प्रासंगिक हो गये हैं। मानवाधिकार के स्वरूप की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर दृष्टिपात करने से यहस्पष्टतः परिलक्षित होता है कि कालक्रम के अनुसार मानवाधिकार की अवधारणा का विकास एक सतत् प्रक्रिया रही है। परिवर्तन की विकास-यात्रा में जिस तरहपुरानी अवधारणाओं के धूमिल होने के साथ-साथ नई अवधारणाओं का उदय हुआ है उसी प्रकार से मानवाधिकारों के विकास की यात्रा रही। 1215के मोग्नाकार्टा से प्रारम्भ हुई मानव अधिकारों की अवधारणा क्रमशः1628 के पैटिशन ऑफ़ राइट 1689 के बिल ऑफ़ राइट्स1776का अमेरिकी घोषणा-पत्र1789 का फ्रांसिसी मानव और नागरिक अधिकार पत्र1920 में राष्ट्र संघ की स्थापना तथा1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के साथ निरन्तर प्रवर्धित हुई है। इस विकास-यात्रा में मानवाधिकारों के स्वरूप और व्यवहार में भी परिवर्तन आए हैं।
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