आज तक कोई भी एक ऐसा मनुष्य इस संसार में जन्म नहीं लिया है जो प्रेम शांति सुकून और आनंद का अभिलाषी न हो जो जीवन को सुखमय न जीना चाहता हो पर यह विडम्बना है कि मनुष्य पूर्ण तृप्ति का अहसास किए वगैर इस संसार से विदा हो जाता है। अपवाद के लिए गिनती के कुछ लोगों को छोड़कर। मनुष्य जहाँ से सुवाशित फूल पाने की अपेक्षा करता है वहाँ उसे खारों के बीच उलझ जाना पड़ता है। यह लेखक का निज अनुभव कहता है। लेखक न अब तक का जीवन संघर्षमय और सांसारिक झंझावतों के बीच कैसे शांति सुकून प्रेम के साथ आनंदमय जिया है इसका उल्लेख सह्दयतापूर्वक मानवता के हितार्थ प्रस्तुत पुस्तक - मानवता की पुकार “सत्यमेव जयते” में किया है। जीवन में सांसारिक झंझावलों के बीच पूर्ण तृप्ति कैसे संभव है इसका उपाय एक मनुष्य होने के नाते दूसरे मनुष्य को सुझाया गया है।
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