Manch Manthan

About The Book

प्रत्येक व्यक्ति दो प्रकार के संसार से गुजरता है। 1. भौतिक संसार - जिसकी चमक-दमक उसे नज़र आती है। 2. सूक्ष्म संसार -जो उसके भीतर मौजूद होकर भी उसे नज़र नहीं आता। सूक्ष्म संसार से ही भौतिक संसार उपजता है। सूक्ष्म संसार में ही उसकी इच्छाएँ भावनाएँ सोच आदि बसती हैं। संसार कभी खुशनुमा व फलता-फूलता नज़र आता है तो वही संसार कभी बेचैनियों मुसीबतों व दुख-दर्द से भरा हुआ दिखता है। दोनों परिस्थितियों को उपजाने का कारण व्यक्ति के भीतर मौजूद सूक्ष्म संसार ही है। ‘मंच-मंथन’ व्यक्ति के भीतर मौजूद सूक्ष्म संसार को मथकर उसकी चेतना को जगाने का प्रयास है। दो मुख्य भागों में बंटे इस नाटकीय उपन्यास के प्रथम भाग में प्रश्नों को कई रूपों में संजोकर चेतना जगाने का प्रयास किया गया है तो दूसरे भाग में लक्ष्य व दिशा देकर मानव मूल्यों को बल देने का। कविता गीत ग़ज़ल कव्वाली भक्ति संगीत आदि कई अलंकारों से सज्जित कर इसे मथने का प्रयास किया गया है ताकि इसमें से जीवन के नए-नए रत्न निकलकर धरती माँ का भौतिक संसार खुशहाल कर सकें।
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