एक नाम मंगली जो महज एक महिला नहीं है बल्कि समय के पहियों के खिलाफ सीना बिछाने वाली कठोर सड़क के समान अडिग महामानव है। समय ने उसको एक पर एक घाव दिए पर उसे कभी अपने जीवन पथ पर डिगा नहीं पाया।उसके पिता की मृत्यु बचपन में हो गई। गरीबी में बचपन बीता। षड्यंत्र करके चाचा ने उसकी शादी एक बूढ़े अपंग से कर दी। समय ने पिता रूपी जख्म बिना भरे एक और चोट दे दिया। कृत्रिम खुशियों ने ज़िन्दगी के पलों को अपने पाले में समेटना चाहा लेकिन विधाता ने एक पर एक जख्म दिए हर दीपक को बुझा डाला हर रास्ते बंद कर दिए लेकिन वो लड़ती रही ज़िन्दगी जीती रही।यह कहानी एक स्त्री के पुत्री पत्नी और मातृत्व के अवरोधों से टकराने का अमिट लेख है। स्त्री संघर्ष की सबसे बड़ी मूर्ती मंगली के अलावा शायद ही कोई होगी।
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