Manik Kaul Kahani ek Kashmari ki

About The Book

माणिक कोई मर्द नहीं है कंचन... तुम औरत होने के लिहाज़ से अगर उसके कन्धे पर सुक़ून तलाशती हो... तो ये सिर्फ़ तुम्हारा भरम है... वो साला एक हिजड़ा है... an absolute... you know what i mean... ताली बजा बजाकर हर मौजूदा सरकार को ख़ुश करने की कोशिश करता है... कॉंग्रेस थी तब वो शुद्ध मार्क्सिस्ट बन्दा हुआ करता था... बोलता था मैं तो कार्ल मार्क्स को अपना भगवान मानता हूं... अब बीजेपी आई तो वो फ़टाक से संघी बन गया... लगा रज्जू भईया रज्जू भईया का पहाड़ा पढ़ने... संघियों की लंगोट में घुस गया जाकर... वो हर सरकार के आगे भड़ैंती करता है नंगा नाचता है सबके आगे... ऐसे क्यूं फिरता है बताओ... ऑबवियसली बख़्शीश पाने के लिए... थाप दे देकर हमेशा राहग़ीरों से भीख मांगता है ठीक वैसे ही जैसे आती-जाती सरकारों से रोकड़ा मांगने पंहुच जाता है भिखमंगा... एक हिजड़े से कत्तई जुदा नहीं है तुम्हारा आशिक़... believe me इससे रत्ती भर भी ज़्यादा औक़ात नहीं है उसकी...
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