मनमाही' एक प्रयास है दो कवियों के बीच की जुगलबंदी का। कुल मिलाकर इक्यावन कविताओं का संग्रह प्रस्तुत किया गया है। कवियित्री मनी की सत्ताइस कविताओं में स्त्री का संघर्ष यथार्थ की तरह उकेरा गया है। जहाँ यह घोर अंधेरे और यातनाओं भरे जीवन में फसी स्त्री की व्यथा प्रकट करती है वहीं आज़ादी और मुक्ति की असीम आकांक्षा भी प्रकट करती हैं। अपनी चौबीस कविताओं के माध्यम से कवि माही ने पूरक का काम करते हुए संकटों के घने काले बादलों के बीच आशाओं के इन्द्रधनुषी रंग बिखेरने का यत्न किया है।मननाही के रूप में ये प्रस्तुति मज़बूती से आशा का दामन थामने का प्रयास है और पाठकों को प्रेरित करने का शब्दयोजन है।स्वयं को सामने न रखते हुए लेखिका ने अपने शब्दों को सामने रखा है। पुस्तक का नाम ही लेखक की पहचान है।
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