Mann

About The Book

मेरी कवितायें चित्रकारी मूर्तिकारी एनीमेशन और हर सृजन को रुप में देती हूँ लेकिन उसका सौंदर्य मेरी मम्मी होती हैं इन कविताओं में भी शब्द मेरे हैं लेकिन शब्दों की आत्मा मेरी मम्मी हैं मेरी इश्वर तुल्य माँ मेरा 'मन' हैं जो ना होने पर भी मेरे भीतर थी है और हमेशा रहेंगी वो मन जिससे करीब और कुछ नहीं होता वो मन जो चुपके से मेरे कान में कहता है लिखो और मैं लिखने लगती हूँ मन ही तो है जो इन अक्षरों में उतर रहा है मन जो मेरे रंगों की रंगत और विचारों की सुन्दरता है वो मन जिसने कभी कदमों को रुकने ही नहीं दिया जिसकी वजह से दुनियां ने मेरे नाम के आगे चित्रकार मूर्तिकार और कवि जोड दिया मुझे एक बहादुर लड़की का खिताब दिया वो प्यारा सा मन जिसने मेरे कल्पना के संसार को इतना विस्तृत किया वो मन जो मेरी पल्कों से बहता है होठों से मुस्कुराता है और जब भी दुनियां कहती है 'नहीं' वो बार बार ज़िद करता है कि हाँ तुम कर सकती हो ज़िन्दगी के हर उस कठिन मोड पर जहां सब नामुमकिन लगता है जब हर बार वक्त के प्रहार के साथ मेरे कुछ और टुकडे हो जाते हैं मुझे यकीन हो जाता है कि मैं हार गयी लेकिन मेरे ही इस यकीन को झुठला कर मन से माँ के शब्द कानों में सुनाई देते है 'उठो ये बस ज़िन्दगी का एक पडाव था' मेरा मन जीवन और 'माँ' तीनों एक ही तो है- क्षमा उर्मिला
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