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About The Book
Description
Author
”मन का मौन परिमेय नहीं है उसे मापा नहीं जा सकता। मन को पूरी तरह से खामोश होना होता है विचार की एक भी हलचल के बिना। और यह केवल तभी घटित हो सकता है जब आपने अपनी चेतना की अंतर्वस्तु को उसमें जो कुछ भी है उस सब को समझ लिया हो। वह अंतर्वस्तु जो कि आपका दैनिक जीवन है--आपकी प्रतिक्रियाएं आपको जो ठेस लगी है आपके दंभ आपकी चातुरी तथा धूर्ततापूर्ण छलावे आपकी चेतना का अनन्वेषित अनखोजा हिस्सा--उस सब का अवलोकन उस सब का देखा जाना बहुत ज़रूरी है; और उनको एक-एक करके लेने एक-एक करके उनसे छुटकारा पाने की बात नहीं