इस संग्रह की कविताएँ मन में उठती जिज्ञासा और वहीं पार्श्व में पनपती आशा के संग मेरी यात्रा का दूसरा चरण हैं। इनमें अपनी चेतना की सीमा को छूने कभी-कभी उसके पार जा कर देखने और लौट कर मन के केन्द्र बिंदु पर आ सिमटने के अनुभवों को रेखांकित करने का प्रयास है। संग ही सहज उल्लास संवेदना की सूक्ष्मता अदम्य जिजीविषा से मेरा साक्षात्कार भी है।
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