भारतवर्ष में देव-भूमि हिमाचल प्रदेश आदिकाल से ही ऋषियों का निवास स्थान रहा है। ऐसे ही गाँव बीर बगेड़ा में श्री ‘मांगो राम’ का जन्म 25 फरवरी 1935 ई- में हुआ जिन्हें अपने कर्मों एवं आचरण के फलस्वरूप 1975 ई- में सुदर्शन प्राप्ति और परिक्षाकाल उपरांत ‘अपर ब्रह्म परम भक्त देव-ऋषि’ अपनाया गया। तीन लोक के मालिक का न कोई नाम है न रूप है नाम भक्तों और ऋषियों द्वारा ही बोध के आधार पर दिए गए हैं अतः आपने उन्हें ‘सच्ची शक्ति’ के नाम से संबोधित किया है। ‘सर्वशक्तिमान’ द्वारा प्राप्त ज्ञान-भंडार को आपने लिपिबद्ध किया जो संपूर्ण मानव जाति के हित में रहेगा। सेना मुख्यालय में अधीक्षक के पद रहते हुए 30 अक्टूबर 1992 ई- में आप ब्रह्मलीन हुए।आपकी प्रस्तूत पुस्तक ‘मानसिक तत्त्व’ में आपने आदिकाल से चली आ रही अनेक संस्कृतियों एवं ज्ञान में रही त्रुटियों की सत्यता का वास्तविक यथार्थपूर्ण चित्रण किया है। मन तथा बुद्धि की सुलझी हुई संस्कृति को ही संस्कृति समझना चाहिए जिससे अपनी तथा लोगों की भलाई की जा सकती है। ‘सृष्टि के रचयिता’ ‘ब्रह्माण्ड धारी’ ‘सर्वशक्तिमान’ को ‘ॐ ’ के नाम से या ईश्वर-प्रभु जैसे कि उन्हें पुकारा जाता है; उचित नाम हैं लेकिन जन्म लिए हुए प्राणी के रूप में समझना अज्ञानता की बात है। मन को वही विचार छू जाने वाले होते हैं जिनमें सत्यता होती है। मन की सत्यता ही भगवान को अच्छी लगती है। अतः मनुष्य में सदाचार के नियम ही उसे फूल की तरह विकसित करते हैं।
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