21वीं सदी में अलौकिक शक्तियों के बारे में बात करना जाने किस हद तक सही है। जब हम चमत्कार शब्द का प्रयोग करते हैं तो लोग मानने से इंकार कर सकते हैं लेकिन ईश्वर शब्द के इस्तेमाल को लोग स्वीकार करते हैं। अब ये लोगों का डर है या आस्था इसका पता नहीं लेकिन ईश्वर शब्द एक शक्ति और भरोसे का प्रतीक तो ज़रूर है। चमत्कार के स्थान पर आज के युग में अगर हम अध्यात्म का असर कहें लिखें या माने तो यह ज़्यादा आसान और आसानी से स्वीकार करने वाला विषय बन जाता है। मैंने कहीं पढ़ा था कि कौन कहता है ईश्वर नज़र नहीं आता! एक वही तो नज़र आता है जब कोई और नज़र नहीं आता। जब मनुष्य असमंजस परेशानी या दुःख की घड़ी में होता है तब वह ईश्वर को याद करता है। किसी नास्तिक के लिए वह वस्तु कोई और ऊर्जा हो सकते हैं या वह उसे कोई और नाम दे सकता है लेकिन फिलहाल हम उसे ईश्वर कहेंगे।मंथन कोई जादुई किताब नहीं है ना ही यह चमत्कार दिखाती है। ये एक मार्ग है। घनघोर जंगल में भटकते एक व्याकुल मन के लिए। सांत्वना या तसल्ली जिससे भी मिले अच्छा ही रहता है। इस किताब से हमें यही हासिल होता है। भौतिक और कोलाहल से भरी दुनिया में एक साधारण ज़िंदगी जीते हुए कैसे मन को शांत रखा जा सकता है और कैसे एक सकारात्मक ऊर्जा से ख़ुद को ओत-प्रोत किया जा सकता है ये किताब हमें वही बताने की कोशिश करती है। दिए गए उदाहरण सत्य हैं कुछ आप-बीती हैं कुछ आँखों देखी। पलटते हर पन्ने के साथ मन को सकारात्मक ऊर्जा से भरते जाना यही इस किताब की सबसे बड़ी ताक़त है। विज्ञान और अध्यात्म के सामंजस्य से बने समंदर का ये ऐसा मंथन है जिसमें हलाहल नहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ अमृत ही निकलता है।
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