विश्व के बदलते परिवेश में यदि भारत देश को विकास की तरफ से जाना है तो मनु की संस्कार विहीन पद्धति को संपूर्ण त्याग करना होगा. सामाजिक स्वतंत्रता कायम करने के लिए सभी आडम्बर त्यागने होगें जिनका निर्माण मानव समाज के शोषण करने के उद्देश्य से किया गया था. शूद्र वर्ण (शोषित वर्ग) दूर शिक्षित तबका मानवीय स्वतंत्रता एवं आत्मसम्मान के लिए उठ खड़ा हुआ है. वह हर दिशा की और अपनी पैनी दृष्टि से उन तमाम प्राचीन मूर्खतापूर्ण एवं अनर्गत व्यवस्थाओं का पुनः समीक्षा कर रहा है.समाज को अन्याय से यथार्थ की ओर ले जाना एक पुनीत कार्य है और संविधान अनुच्छेद 51-AH इस कार्य के लिए प्रेरित करता है. इसी दिशा में एक छोटा सा प्रयास है इस कार्य से ब्राह्मणवाद को या किसी वर्ग विशेष को कोई आघात पहुंचता है यदि वे सच्चे मानवता यादी है तो सहन करना ही होगा इसी में सम्पूर्ण मानवता एवं देश का विकास भी नीहिए है
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