राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिपादित कर एक महान सांस्कृतिक आधार प्रतिष्ठित किया था और उसके बाद अनेक प्रकार से राम कथा का स्वरूप विकसित होता रहा और बाद के आने वाले रचनाकारों ने- "हरि अनंत हरि कथा अनन्ता" के आधार पर राम की कथा को उसके मूल्य की रक्षा करते हुए अपने ढंग से प्रस्तुत किया है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामकथा को भत्तिफ़ का व्यावहारिक केंद्र बिन्दु बना दिया। उनके राम भक्ति के आधार हैं और उनका जीवन ही अनुकरणीय है। गोस्वामी तुलसीदास के बाद भी राम कथा को विभिन्न रूपों में अनुभव किया जाता रहा और जहां-जहां इस विराट भावभूमि में कवियों की दृष्टि में जो स्थल मानवीय दृष्टि से उपेक्षित रह गए उन्हें केंद्र बनाकर राम की कथा में अन्य आयाम जोड़ने का उपक्रम भी जारी रहा। मर्यादा पुरुषोत्तम राम का उपन्यासिक शैली में यह प्रस्तुतीकरण भी अद्भुत है।
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